जौनपुर एक ऐतिहासिक शहर है। मध्यकालीन भारत में शर्की शासकों की राजधानी रहा जौनपुर वाराणसी से 58 किलोमीटर और प्रयागराज से 100 किलोमीटर दूर उत्तर दिशा में गोमती नदी के तट पर बसा है। मध्यकालीन भारत में जौनपुर सल्तनत (1394 और 1479 के बीच) उत्तरी भारत का एक स्वतंत्र राज्य था। वर्तमान राज्य उत्तर प्रदेश जौनपुर सल्तनत के अंतर्गत आता था, जिसपर शर्की शासक जौनपुर से शासन करते थे, जौनपुर का पुराना नाम देवनगरी था (इसका उल्लेख शिवपुराण में भी है) शर्की शासकों ने इसपर कब्जा करके इसका नाम देवनगरी से जौनपुर में परिवर्तित कर दिया। अवधी यहाँ की मुख्य भाषा है।
1194 ई0 में कुतुबुद्दीन ऐबक ने मनदेव या मनदेय वर्तमान में जफराबाद पर आक्रमण कर दिया। तत्कालीन राजा उदयपाल को पराजित किया और दीवानजीत सिंह को सत्ता सौप कर बनारस की ओर चल दिया। 1389 ई0 में फिरोजशाह का पुत्र महमूदशाह गद्दी पर बैठा। उसने मलिक सरवर ख्वाजा को मंत्री बनाया और बाद में 1393 ई0 में मलिक उसशर्क की उपाधि देकर कन्नौज से बिहार तक का क्षेत्र उसे सौप दिया। मलिक उसशर्क ने जौनपुर को राजधानी बनाया और इटावा से बंगाल तक तथा विन्धयाचल से नेपाल तक अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया। शर्की वंश के संस्थापक मलिक उसशर्क की मृत्यु 1398 ई0 में हो गयी। जौनपुर की गद्दी पर उसका दत्तक पुत्र सैयद मुबारकशाह बैठा। उसके बाद उसका छोटा भाई इब्राहिमशाह गद्दी पर बैठा। इब्राहिमशाह निपुण व कुशल शासक रहा। उसने हिन्दुओं के साथ सद् भाव की नीति पर कार्य किया।
शर्कीकाल में जौनपुर में अनेकों भव्य भवनों, मस्जिदों व मकबरों का र्निमाण हुआ। फिरोजशाह ने 1393 ई0 में अटाला मस्जिद की नींव डाली थी, लेकिन 1408 ई0 में इब्राहिम शाह ने पूरा किया। इब्राहिम शाह ने जामा मस्जिद एवं बड़ी मस्जिद का र्निमाण प्रारम्भ कराया, इसे हूसेन शाह ने पूरा किया। शिक्षा, संस्क़ृति, संगीत, कला और साहित्य के क्षेत्र में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखने वाले जनपद जौनपुर में हिन्दू- मुस्लिम साम्प्रदायिक सद् भाव का जो अनूठा स्वरूप शर्कीकाल में विद्यमान रहा है, उसकी गंध आज भी विद्यमान है।
1484 ई0 से 1525 ई0 तक लोदी वंश का जौनपुर की गद्दी पर आधिपत्य रहा है। 1526 ई0 में दिल्ली पर बाबर ने आक्रमण कर दिया और पानीपत के मैदान में इब्राहिम लोदी को परास्त कर मार डाला। जौनपुर पर विजय पाने के लिये बाबर ने अपने पुत्र हुमायू को भेजा जिसने जौनपुर के शासक को परास्त कर दिया। 1556 ई0 में हुमायूं की मृत्यु हो गयी तो 18 वर्ष की अवस्था में उसका पुत्र जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर गद्दी पर बैठा। 1567 ई0 में जब अली कुली खॉ ने विद्रोह कर दिया तो अकबर ने स्वयं चढ़ाई किया और युद्ध में अली कुली खॉ मारा गया। अकबर जौनपुर आया और यहॉ काफी दिनो तक निवास किया। तत्पश्चात सरदार मुनीम खॉ को शासक बनाकर वापस चला गया। अकबर के ही शासनकाल में शाही पुल जौनपुर का र्निमाण हुआ।
पौराणिक काल के बाद विद्वतजन जौनपुर को चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के काल से जोड़ते हुये ‘मनइच’ तक लाते है और तथ्य है कि यहॉ बौद्ध प्रभाव रहा है। भर एवं शोइरी, गूजर, प्रतिहार, गहरवार भी अधिपति रहे है। यहॉ मोहम्मद गजनवी के हटने के बाद 11 वीं सदी मोहम्मद गोरी ज्ञानचन्द संघर्ष में गोरी द्वारा जीत एवं अरूनी में खजाना भेजाना, 1321 ई0 में गयासुद्दीन तुगलक द्वारा अपने पुत्र जफर खॉ तुगलक की जौनपुर में नियुक्ति उसको वर्तमान शहर के र्निमाण से जोड़ती है। डेढ़ शताब्दी तक मुगल सल्तनत का अंग रहने के बाद 1722 ई0 में जौनपुर अवध के नवाब को सौपा गया। 1775 ई0 से 1788 ई0 तक यह बनारस के अधीन रहा और बाद में रेजीडेन्ट डेकना के साथ रहा। 1818 ई0 में जौनपुर के अधीन आजमगढ़ को भी कर दिया गया, लेकिन 1822 ई0 एवं 1830 ई0 में विभाजित कर अलग कर दिया गया।
मुख्य आकर्षण
अटाला मस्जिद

अटाला मस्जिद का निर्माण 1393 ईस्वी में फिरोजशाह तुगलक के समय में शुरू हुआ था जो १४०८ में जाकर इब्राहिम शर्की के शासनकाल में पूरा हुआ। मस्जिद के तीन तोरण द्वार हैं जिनमें सुंदर सजावट की गई है। बीच का तोरण द्वार सबसे ऊंचा है और इसकी लंबाई २३ मीटर है। इसकी बनावट देखकर कोई भी शर्की स्थापत्य की उच्चस्तरीय निर्माण कला का आसानी से अंदाजा लगा सकता है। अटाला मस्जिद पूर्व में मां अटला देवी का मंदिर था जिसका उल्लेख किताबो और पुराणों में भी मिलता है जिसे शर्की शासकों द्वारा अटाला मस्जिद में परिवर्तित कर दिया गया।
जामा मस्जिद

जौनपुर की इस सबसे विशाल मस्जिद का निर्माण हुसैन शाह ने १४५८-७८ के बीच करवाया था। एक ऊंचे चबूतर पर बनी इस मस्जिद का आंगन ६६ मीटर और ६४.५ मीटर का है। प्रार्थना कक्ष के अंदरूनी हिस्से में एक ऊंचा और आकर्षक गुंबद बना हुआ है। इसी मस्जिद में तब्लीगी विचारधारा के मुसक्लमणो जौनपुर मुख्यालय भी स्थित है ।मस्जिद से लगा हुआ शरकी क़ब्रिस्तान भी आकर्षक का केंद्र है जौनपुर की जामा मस्जिद का उल्लेख बड़ी देवी के मंदिर के रूप में इतिहास में मिलता है जिसे शर्की शासकों द्वारा परिवर्तित कर दिया गया।
शाही किला
शाही किला गोमती के बाएं किनारे पर शहर के दिल में स्थित है। शाही किला फिरोजशाह ने १३६२ ई. में बनाया था इस किले के भीतरी गेट की ऊचाई २६.५ फुट और चौड़ाई १६ फुट है। केंद्रीय फाटक ३६ फुट उचा है। इसके एक शीर्ष पर वहाँ एक विशाल गुंबद है। शाही किला में कुछ आदि मेहराब रहते हैं जो अपने प्राचीन वैभव की कहानी बयान करते है।
लाल दरवाजा मस्जिद
इस मस्जिद का निर्माण १४५० के आसपास हुआ था। लाल दरवाजा मस्जिद बनवाने का श्रेय सुल्तान महमूद शाह की रानी बीबी राजी को जाता है। इस मस्जिद का क्षेत्रफल अटाला मस्जिद से कम है। लाल पत्थर के दरवाजे से बने होने के कारण इसे लाल दरवाजा मस्जिद कहा जाता है। इस मस्जिद में जौनपुर का सबसे पुराना मदरसा भी है जिसके बारे में कहा जाता है कि यहां सासाराम के शासक शेर शाह सूरी ने शिक्षा ग्रहण की थी इस मदरसा का नाम जामिया हुसैनिया है जिसके प्रबंधक मौलाना तौफ़ीक़ क़ासमी है
खालिश मुखलिश मस्जिद
यह मस्जिद १४१७ ई. में बनी थी। मस्जिद का निर्माण मलिक मुखलिश और खालिश ने करवाया था।
शाही ब्रिज
गोमती नदी पर बने इस खूबसूरत ब्रिज को मुनीम खान ने 1568 ई. में बनवाया था। शर्कीकाल में जौनपुर में अनेकों भव्य भवनों, मस्जिदों व मकबरों का र्निमाण हुआ। फिरोजशाह ने 1393 ई0 में अटाला मस्जिद की नींव डाली थी, लेकिन 1408 ई0 में इब्राहिम शाह ने पूरा किया.इब्राहिम शाह ने जामा मस्जिद एवं बड़ी मस्जिद का र्निमाण प्रारम्भ कराया, इसे हूसेन शाह ने पूरा किया। शिक्षा, संस्क़ृति, संगीत, कला और साहित्य के क्षेत्र में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखने वाले जनपद जौनपुर में हिन्दू- मुस्लिम साम्प्रदायिक सद् भाव का जो अनूठा स्वरूप शर्कीकाल में विद्यमान रहा है, उसकी गंध आज भी विद्यमान है। यह मुग़ल काल का पहला पुल है।
शीतला माता मंदिर (चौकियां धाम)
यहां शीतला माता का लोकप्रिय प्राचीन मंदिर बना हुआ है। इसके निर्माण की कोई अवधि या उल्लेख नहीं है बताया जाता है कि यह मौर्य कालीन प्राचीन मन्दिर था जिसका जीर्णोद्धार करके मां शीतला चौकियां धाम रखा गया। इस मंदिर के साथ ही एक बहुत ही खूबसुरत तालाब भी है, श्रद्धालुओं का यहां नियमित आना-जाना लगा रहता है। यहाँ पर हर रोज लगभग ५००० से ७००० लोग आते हैं। नवरात्र के समय में तो यहाँ बहुत ही भीड़ होती हैं। यहाँ बहुत दूर-दूर से लोग अपनी मनोकामना पूर्ण करने के लिये आते हैं। यह हिन्दुओ का एक पवित्र मंदिर जहाँ हर श्रद्धालुओं की मनोकामना शीतला माता पूरा करती है।
बारिनाथ मंदिर
बाबा बारिनाथ का मंदिर इतिहासकारों के अनुसार लगभग ३०० वर्ष पुराना है। यह मंदिर उर्दू बाज़ार में स्थित है और इस दायरा कई बीघे में है। बाहर से देखने में आज यह उतना बड़ा मंदिर नहीं दीखता लेकिन प्रवेश द्वार से अन्दर जाने पे पता लगता है कि यह कितना विशाल रहा होगा।
यमदाग्नी आश्रम
जिले के जमैथा गावं में गोमती नदी के किनारे स्थित यह आश्रम एक धार्मिक केन्द्र के रूप में विख्यात है। सप्तऋषियों में से एक ऋषि जमदग्नि उनकी पत्नी रेणुका और पुत्र परशुराम के साथ यहीं रहते थे। संत परशुराम से संबंध रखने वाला यह आश्रम आसपास के क्षेत्र से लोगों को आकर्षित करता है।
रामेश्वरम महादेव
यह भगवान शिव का मंदिर राजेपुर त्रीमुहानी जो सई और गोमती के संगम पर बसा है। इसी संगम की वजह से इसका नाम त्रीमुहानी पड़ा है यह जौनपुर से 12 किलोमीटर दूर पूर्व की दिशा में सरकोनी बाजार से ३ किलोमीटर पर हैं और इस स्थान के विषय में यह भी कहा जाता है कि लंका विजय करने के बाद जब राम अयोध्या लौट रहे थे तब उस दौरान सई-गोमती संगम पे कार्तिक पुर्णिमा के दिन स्नान किया जिसका साक्ष्य वाल्मीकि रामायण में मिलता है “सई उतर गोमती नहाये , चौथे दिवस अवधपुर आये ॥ तब से कार्तिक पुर्णिमा के दिन प्रत्येक वर्ष मेला लगता है। त्रिमुहानी मेला संगम के तीनों छोर विजईपुर, उदपुर, राजेपुर पे लगता है दूर सुदूर से श्रद्धालु यहाँ स्नान ध्यान करने आते हैं। विजईपुर गाँव में अष्टावक्र मुनि की तपोस्थली भी है और इसी विजईपुर गाँव में ही ‘नदिया के पार’ फिल्म की शूटिंग हुई।
गोकुल घाट(गोकुल धाम)
गोकुल धाम मंदिर अत्यंत पुराना मंदिर है जिसे लगभग 400 वर्ष पुराना माना जाता है जो कि गोमती नदी के तीर स्थित है। गोकुल घाट के संरक्षक साहब लाल मौर्य के द्वारा बताया गया है कि यह मंदिर बहुत ही प्राचीन और बहुत विशाल है परन्तु अब इसका अधिक हिस्सा ग्रामीणों द्वारा कब्जा कर लिया गया है।
पांचों शिवाला
यह मंदिर जौनपुर के प्राचीन मंदिरों में से एक है इसकी प्राचीनता के विषय में किसी को कोई सटीक जानकारी नहीं है परन्तु यह अत्यंत आकर्षक शिव मंदिर है। इसमें पांच शिवालयों का समूह आकर्षक है इसके इतिहास का कहीं सटीक वर्णन नहीं मिलता।
जौनपुर की मूली
जौनपुर की मूली बहुत प्रसिद्ध है और यह लगभग 4 से 6 फीट तक होती है जब भी ऐसी मूली सामने आती है चर्चा का विषय बन जाती है और उसे देखने के लिए भीड़ लग जाती है । लेकिन वर्तमान में यह अपना वजूद खो रही है। इसके पीछे कई कारण हैं, जैसे मूली की खेती कुछ विशेष क्षेत्रों में होना जहां मकान बनाये जाने से, तथा मूली का उचित लागत न मिलने के कारण किसानों का मूली से मोहभंग हो गया। यही कारण है कि 15 से 17 किलो तक वजन की कुल मूली अब 5 से 7 किलो की भी मुश्किल से हो पाती है। लेकिन कभी कभी वर्तमान में भी यह चर्चा का विषय बनी रहती है।