महंगाई की मार से सब हो रहे परेशान, कैसे चलेगा काम?

महंगाई की मार से सब हो रहे परेशान, कैसे चलेगा काम?


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महंगाई की मार से सब हो रहे परेशान, कैसे चलेगा काम?

तेजस टूडे ब्यूरो
देवी प्रसाद शर्मा
आजमगढ़। वर्तमान में शासन कर रही सरकार जनता की भावनाओं पर कितना खरा उतर रही है आज यह किसी से छुपा नहीं चारों तरफ महंगाई के आलम से निजात पाने के लिए हर कोई कड़ी कसरत कर रहा है लेकिन उसको किसी भी तरह की सफलता कहीं से भी दिखाई नहीं दे रही है आम आदमी जब अपने घर से ऑटो, बस, फोर व्हीलर या अन्य गाड़ियों से कहीं जाने का प्रयास करता है तो उसको डीजल का दाम बढ़ जाने के कारण बढ़े हुए दामों का भाड़ा जोड़कर उनसे पैसा वसूला करते हैं जिससे आए दिन सवारी गाड़ियों और यात्रियों में नोकझोंक किसी भी जगह कहीं पर भी देखा जा सकता है दलहन और तिलहन के लगातार बढ़ रही मांग के साथ उस पर महंगाई का आलम लोगों के जीने और मरने पर मजबूर कर दे रहाहै जनता चीख रही है, चिल्ला रही है, उससे सरकार के नुमाइंदे कितना सतर्क और सजग हैं उनकी बातों को कहां तक उठाया जा रहा है यह केवल देखा और सुना जा सकता है उस पर कोई कार्यवाही कहीं पर भी दिखाई नहीं दे रही है आए दिन बढ़ रहे पेट्रोल, डीजल के दाम से जो जरूरी सामान है उस पर भी लगातार रेट बढ़ता जा रहा है वहीं पर गरीब परिवार के लिए जो आवश्यक सामग्री है उस पर भी किसी भी तरह की कोई छूट दिखाई नहीं दे रही है बाजारों में जब आप सामान लेने जाइए तो दुकानों पर भी सामानों की बिक्री कर रहे दुकानदारों से बढ़े हुए रेटों को लेकर बहस हो जाती है तो वह लोग कई तरह के टैक्स के साथ अन्य टैक्स का बहाना बनाकर सामानों पर काफी रेट लेने से पीछे नहींहैं अभी पिछले दिनों जो धान किसान अपने घर से ओने पौने दामों में बेचकर काम समाप्त कर लिए थे वहीं धान इस बार सौ, दोसौ, तीन सौ रुपए किलो के रेट थे बाजारों में नई प्रजाति का बहाना बनाकर बेचा गया था और किसान उसे सहर्ष स्वीकार करके खरीदा था किसान बेचारा किसी तरह से बीज, धान, खरीदने से पीछे नहीं रहा खाद, दवा सब का रेट हाई लेवल पर चल रहा है इसके बारे में कोई पूछने वाला या कुछ करने वाला दिखाई नहीं दे रहा है जब किसान अपने घर की पैदावार से संबंधित सामानों की बिक्री बाजारों में करने के लिए सोचता है तो उसके द्वारा पैदा की हुई फसलों का रेट पूरी तरह से कम कर दिया जाता है जिससे उनके जीवन स्तर में कोई बदलाव नहीं होता है यही कारण है कि किसान के सामने प्रकृति, मौसम भी भी डेरा डालो, घेरा डालो कि रणनीति अपनाकर उसके सारे किए कराए पर पानी फेर देते हैं कोविड-19 के असर से जो लोग बाहर से आए वह आज भी गांव में रहकर एक फोन का इंतजार कर रहे हैं लेकिन आज भी उनके हाथ बेरोजगारी के लिस्ट में पड़े हुए हैं सरकार भले ही दावा कर रही हो की मनरेगा एवं अन्य संस्थाओं के माध्यम से बेरोजगारों को प्रतिदिन काम मिल रहा है लेकिन यह केवल कागजों में कोटा पूर्ति का काम सुनने और देखने को मिल रहा है महंगाई की मार का असर यह भी देखा जा सकता है जो लोग घर बनाने को सोच रहे हैं उनके लिए भी गिट्टी, मोरंग, बालू, सीमेंट, मजदूरी का रेट लगातार बढ़ता जा रहा है हालत यह हो चुकी है गरीब आदमी भगवान भरोसे अपने जीविका चलाने के लिए मजबूर है लेकिन आज ग्रामीण अंचल में लोगों की स्थिति बदतर से बदतर होती जा रही है और सरकार के लोग विकास का ढिंढोरा पीट रहे हैं बहरहाल विकास की बात तो दूर आज लोगों के सामने आटा, दाल, तेल, तिलहन, नून, चीनी के अलावा सरिया, गिट्टी, मोरंग, बालू, मजदूरी सब का दाम लगातार हाई लेवल पर पहुंच रहा है लेकिन सरकार के लोग कुंभकरणी नींद में सो रहे हैं विकास की गति को लगातार अंजाम दे रहे हैं ऐसा वह पोस्टरों,न्यूज़ चैनलों अन्य माध्यमों से प्रचार प्रसार करके स्वयं की पीठ थपथपा रहे हैं लेकिन महत्वपूर्ण बात यह भी है की जनता अब जागरूक हो चुकी है वह सब कुछ जानती है।

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